विशेष सत्र के दौरान विपक्ष में असंतोष की तस्वीर झलकी

विशेष सत्र के दौरान विपक्ष में असंतोष की तस्वीर झलकी

यूपी विधानमंडल के विशेष सत्र के सफल आयोजन ने प्रदेश सरकार के सतत विकास के इरादों को और मजबूती दे दी है। वहीं विपक्षी दलों में पनप रहे असंतोष की तस्वीर को भी थोड़ा-बहुत साफ कर दिया है। शायद यही कारण रहा कि जहां सरकार ने सत्र के दौरान लगातार विपक्ष को आड़े हाथों लिया तो वहीं छह विधायकों ने सरकार के पक्ष में आकर पार्टी हाईकमान के सामने अपने इरादे साफ कर दिए।

कांग्रेस, सपा और बसपा के कुछ नेताओं ने भले ही गांधीजी के आदर्शों की आड़ ली लेकिन वे सरकार के पक्ष में आने में जरा भी नहीं झिझके। सत्र की घोषणा होते ही यह चर्चा आम हो गई थी कि कांग्रेस, सपा और बसपा सत्र में शामिल नहीं होंगे लेकिन इसका अंदाजा किसी को नहीं था कि विपक्ष में इस बहाने सत्तादल प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सेंध लगाने में भी कामयाब होगा।

राईनी ने चौंकाया : बसपा के असलम राईनी ने तो सबको चौंका ही दिया। वह ऐसे विधायक हैं जो सरकार से अपने प्रश्नों के लिए जाने जाते हैं। हालांकि उन्होंने साफ किया कि उनकी आस्था बसपा में थी और रहेगी लेकिन भाजपा के एक नेता ने ही कहा कि बसपा में रहते हुए ऐसा फैसला करना नि:संदेह साहस का काम है। कुछ ऐसे ही संकेत जौनपुर के एमएलसी ब्रजेश सिंह प्रिंसू के सरकार के साथ आने और पुरवा से विधायक अनिल सिंह के फैसले से भी मिले। ये दोनों अभी बसपा में हैं। 

कांग्रेस के गढ़ में हलचल!
सबसे ज्यादा हैरत में कांग्रेस की अदिति सिंह ने डाला। वह ऐन उस मौके पर सदन में आईं जब उनकी नेता प्रियंका गांधी लखनऊ में सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करने के लिए मौजूद थीं। अदिति सदन में अक्सर मुख्यमंत्री योगी की प्रशंसा करते देखी जाती थीं। उनके साथ सपा के राकेश सिंह भी सदन में अक्सर विरोधी दल के होने के बावजूद मुख्यमंत्री का आशीर्वाद लेने में हिचकते नहीं थे। वैसे इसके पीछे भाजपा में शामिल हो चुके रायबरेली के एक बड़े नेता की कोशिशें भी मानी जा रही हैं।

अदिति और राकेश के इस कदम से कांग्रेस के गढ़ रायबरेली की सियासत में हलचल के संकेत मिल रहे हैं। ऐसी ही हकीकत शिवपाल यादव के सदन में आने के पीछे की है। उन पर सरकार की मेहरबानियां किसी से छिपी नहीं थीं। उन्हें बंगले के साथ सुरक्षा भी दी गई है। उनकी सदस्यता खत्म करने की नेता प्रतिपक्ष की याचिका भी कानूनी दांवपेंच में अटकी रही।

शिवपाल के आने पर सदन की गर्मजोशी से साफ था कि सत्तापक्ष कहीं न कहीं विरोध करने वाली सपा को संदेश देना चाहती था। चर्चा रही कि उन्हें भी राजी करने में सपा में रहे और अब भाजपा में आ चुके एक एमएलसी को लगाया गया। 

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